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Thursday 13 February, 2014

।दलाली जिंदाबाद !

किसानी बकबास है ,बनियौटी चोखा ,निवेशक की बजाय ब्रोकिंग में चमक थी ,और जो था फायदा ही ,निवेश केवल मुंह ,मुखौटा एवं भंगिमा का ही था ।देह धुनती थी रंडियां ,मजा मारते थे भड़ुए ।लेखक की बजाय प्रकाशक बनना मुफीद था ,नए लेखक यहां आराम से फँसते थे ।यह कोई छोटा-खोटा धंधा नहीं था ,दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश जो अपने आपको सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे महान वामपंथी कहते थे , को भी ये पता था कि दलाली कोई साधारण चीज नहीं है ,इसीलिए वे हथियार बनाते भी थे ,और दलाली भी खुद ही करते थे ।यह महायुग था ,जिसमें सबसे ज्‍यादा चमक तृतीयक क्षेत्र के पास ही था ।दलाली जिंदाबाद !



दलाली कर रहे हैं न भैया ,एकदम करिए ,परंतु आकाश की ऊंचाई से या फिर धरती की गुरूता से एकदम ही प्रभावित नहीं होइए ,होइए भी तो दिखे नहीं ,और दिख भी जाए तो उसका फायदा हो ।मौका मिले तो ये भी कहिए कि धरती की गुरूत्‍वाकर्षण शक्ति को आप कम या ज्‍यादा कर सकते हैं ,या फिर आकाश को खींच के नीचा या फिर मुक्‍का मार के ऊपर कर सकते हैं यदि नहीं कर पाए तो ये बताइए कि आपकी नामर्दी जनहित में है ।

Saturday 8 February, 2014

(मऊ से पटना वाया फेफना,बक्‍सर

सरकारों ने भले ही मऊ से पटना जाने के लिए वाया बलिया और वाया भटनी का रूट बनाया ,सजाया हो ,जनता इस रूट से नहीं चलती ।यहां के लोग फेफना में उतरकर ऑटो एवं जीप से बक्‍सर पहुंचते हैं ,फिर बक्‍सर से रेल के माध्‍यम से पटना पहुंचते हैं ।व्‍यापारियों ,किसानों ,कर्मचारियों ,तस्‍करों का यही रूट है ।यही रूट ज्‍यादा लोकप्रिय और सुरक्षित भी है ।बक्‍सर के टूटे पुल से निर्बाध यात्रा जारी है ,पुल का मुख्‍य हिस्‍सा कई भागों में बँटा दिखता है ,और एक हिस्‍से से दूसरे पर जाते वक्‍त दोनों हिस्‍से हिलते हैं ,आवाज करते हैं तथा डराते हैं ।लोगों ने बताया कि कई महीना पहले ही पुल को सरकारी तौर पर बंद कर दिया गया है ,परंतु भारी और हल्‍के वाहन पहले की ही तरह चल रहे हैं ।कुछ लोग डरे भी हैं कि कहीं सही में रूट बंद हो गया तो बलिया से पटना की यह यात्रा कुछ ज्‍यादा घंटों की मांग करेगी ।शायद उत्‍तर प्रदेश और बिहार के सरकारों के लिए यह उच्‍च प्राथमिकता का विषय नहीं रहा हो ,परंतु यहां के लोगों के लिए यह रोटी-बेटी का प्रश्‍न है ।
(मऊ से पटना वाया फेफना,बक्‍सर)